सुना है खूब रंगरेलियां मिलेंगी नहीं दुनिया की बेकलियां मिलेंगी, मगर मरने पर भी बेढब, स्वर्ग में भी बनारस की कहां गलियां मिलेंगी।
बेढब की ये पंक्तियां बनारस जैसे अलमस्त शहर के लिए गलत नहीं।
बनारस में अगर गलियों की बात न हो तो गोया आपने बनारस जाना ही नही । अगर बनारस को जानना हो तो, गलियों की खाक छाननी पड़ेगी ।
ज़िंदगी को जीना और ज़िंदगी काटना इसमे अगर अंतर देखना हो तो बनारस की गलियों में हो आइए, एक पक्का महाली से मिल लीजिये । आप को समझ मे आ जायेगा की अजी हम तो अभी ज़िंदगी काट रहे है। जिंदगी के करीब होने का फलसफा तो इनके पास है।
बनारस में जब दिल्ली ,मुंबई बेंगलुरु या विदेश गए लोग वापस आते हैं ,तो उस शहर का बखान ऐसे करते है, जैसे मानो कोई शहर का बाबू किसी गांव वाले को शहर की मीमांसा समझाता है और वो भौचक सुनता है ।
लेकिन बनारसी तो बनारसी है , स्थूल निराकार समूचे ब्रह्माण्ड का केंद्र, उसको क्या दिल्ली क्या मुम्बई, क्या अमेरिका, वो तो इन सबको यहाँ खींच के, पप्पू के अड़ी पे पटक के चाय पिला के ,केशव का पान खिला के वापस भेजने की क्षमता रखता है।
किम जोंग की मिसाइल का बटन भले अमेरिका को न पता हो लेकिन सच्चा बनारसी जानता है गुरु , किम वा कहा रक्खा है । उसकी इसी ज्ञान क्षमता की इज्ज़त सभी करते है और मजाल ही किसी ने एक बनारसी के ज्ञान का छोर कोई पकड़ सके ,विज्ञान मीमांसा में आर्यभट्ट,इतिहास में अलबरूनी,तो काव्य में बाबा तुलसी सब पीछे छूट जाते है,आयुर्वेद की तो पूछिये मत यहा का बच्चा बच्चा जानता है चुना पी लेने से कैंसर कट जाता है।
खैर छोड़िए इन शहरों की बात । आज बात जिंदगी की करते हैं , जैसे शरीर में शिरा और धमनी की आवश्यकता होती है,
वैसे शहर के लिए आवश्यक होती हैं गलियाँ। इन गलियों में ही बनारस बना और वाराणसी का जन्म हुआ । घूंघरानी गली ,कुंज गली, कचौड़ी गली, सिध्दहेश्वरी गली , चूहा गली ,हाथी गली, न जाने कितनी गलियां है जिनका अस्तित्व गली होने तक ही सीमित है।
काशी भी कभी इन्हीं गलियों में बसता था रचता था और साहित्य सृजन में हाथ बंटाता था । इसी गली में भारतेंदु रहा करते थे तो वही उर्दू के शेक्सपियर कहे जाने वाले आगा हस्र कश्मीरी भी ताल्लुक रखते थे , इन गलियों में कभी काव्य रस की धारा बहती थी तो कभी यही चैती ठुमरी भी बजती थी कभी टप्पा की और चैती कजरी बजता था ।
इन गलियों में ही पक्का महाल का जन्म हुआ , सच ही है बनारस गलियों में बसता है आज भी गलियों में ही बनारस है, वैसे गलियों में गंदगी की भरमार है । गलियाँ हमेशा से इतनी गन्दी न थी अजी ये वो शहर था जहां गलियां दिन के 3 पहर मशक से धोयी जाती और स्थानीय लोग हाथ बटाते फिर नगर पालिका का सृजन हुआ जिसने गलियों को साफ़ करने का बीड़ा उठाया ।तब से लेकर अब तक गलियां सफाई को तरस गयीं ।
3 पहर धुलने वाली गालियां आज बस केवल बरसात के पानी से ही धुलती हैं।
गलियों में जो दुकानें होती हैं, इनकी एक खासियत होती है कि उनका स्वाद तो बहुत अच्छा होता है ,और दाम कम होता है। कई बार तो दुकान है इसलिए कई बार यह दुकान चल नही पाती और बंद हो जाती है क्योंकि दाम तो नहीं बढ़ा सकते लेकिन स्वाद से भी कोई समझौता नहीं कर सकते। राजबन्धु,रामभण्डार,रसकुंज, सब यही की देन है।
विश्वनाथ गली बाबा की गली है। भैरोनाथ,दंडपाणि ये विशेश्वर गंज ,संकठा जी संकठा गली,बाबा तैलंग स्वामी ।पंचगंगा वाली गली । ये काशी के चार खंबे है जिसपे काशी टिकी है।यही गोपाल मंदिर भी है जिसकी भव्यता देखते बनती है।
ये गालियां काशी की धरोहर है। स्वतंत्रता संग्राम की गवाह इस गलियों ने अनगिनत बार अपने आँचल में क्रांतिकारियों को छुपाया,चाहे बिस्मिल हो भगत सिंह या आजाद,सब ने यहां इन गलियों में आश्रय लिया।
आजकल यूटूबर का ज़माना है ।लेकिन बेचारे आजतक दालमंडी को ही गली समझ के आत्ममुग्ध होते है ।
जब भी बनारस आइए गलियों से गले जरूर मिलिये ।क्योंकि विकास की बयार में कौन गली कब इतिहास बन जाये क्या पता
बनारस में स्वयंसिद्ध हस्तियों की भरमार है वैसे ही गलियां भी स्वयं सिद्ध हैं । जिसके लिए बाबा कबीर ने कहा है काशी बस कर क्या हुआ जो घर औरंगाबाद
एक समय था ज्ब काशी का अस्तित्व इन गलियों में था जिनको पक्का महल भी कहते हैं । ये गालियां सीधी थी टेढ़ी थी लेकिन सटीक थी । सीधी इतनी की आपको रास्ता मालूम ना हो तो भी आप पूरा काशी भ्रमण करसकते थे और इतनी टेढ़ी इतनी की एक मोड़ भूलने पर सुबह से शाम हो जाए पर रास्ता ना मिले
इन गलियों संकीर्णता के चलते भास्कर दर्शन सर्वथा अप्राप्त रहता है । धूप के अभाव में और नदी की निकटता से नमी और सीलन से यहां के मकानो में स्थायी बना रहता है ।
कुछ तो भौगोलिक और कुछ नगर निगम की मेहरबानी से यहां पर गंदगी बदबू दीमक तिलचट्टा चूहे आपको हर जगह मिलेंगे लेकिन घर सर्वथा साफ सुथरे और बड़े होते है
घरों की एक विशेषता है गोमुखी घर जिस के कारण मुख्य द्वार तो छोटा होता है लेकिन अंदर विशाल स्थान आंगन चाहे यहां के मकान हो या स्कूल सभी गोमुखी ही होते हैं ।
बनारस की गलियां बनारस की ज़िंदगी है शिरा है धमनी है । आज इनको सहेजने की जरूरत है।
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